प्रारम्भिक विद्धुत Oneline Questions
- विद्युत एक प्रकार की ऊर्जा है और ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार इसका क्षय नहीं होता बल्कि इसे एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है। तात्पर्य यह है कि विद्युत ऊर्जा को उष्मीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा आदि अनेक रूपों में बदला जा सकता है।
- किसी पदार्थ का वह विशेष गुण जिसके कारण वह अपने चारों ओर वैद्युत, चुम्बकीय या वैद्युत-चुम्बकीय प्रभावों को उत्पन्न करता है या उसका अनुभव करता है, वैद्युत आवेश कहलाता है।
- किसी पदार्थ के आवेशित होने का तात्पर्य उस पदार्थ से इलेक्ट्रॉन की कमी या अधिकता से होता है।
- यदि किसी पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की कमी है तो धन आवेशित और अधिकता है तो ऋण आवेशित होता है।
- विद्युत की खोज सर्वप्रथम 2500 वर्ष पूर्व यूनानी वैज्ञानिक “थेल्स" ने घर्षण के द्वारा एबोनाइट की छड़ को रेशम से रगड़ कर उसके द्वारा कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को आकर्षित करने में सफलता पाई थी तथा इसकी व्याख्या बेन्जामिन फ्रैंकलिन ने किया।
- इस प्रकार के विद्युत का कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता है। जिसे स्थैतिक विद्युत (staticelectricity) नाम दिया गया।
- उन्नीसवीं शताब्दी में 'बोल्टा' नामक वैज्ञानिक ने रासायनिक अभिक्रिया द्वारा चलित विद्युत पैदा किया था जिसे चालक तारों के द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता था। यह चल विद्युत (dynamicelectricity) कहलाया। इसके बाद फैराडे ने चुम्बकीय बल रेखाओं का धात्विक चालक द्वारा लगातार छेदन करके भी चल विद्युत का उत्पादन किया। चालक में "आवेश प्रवाह की दर" को विद्युत धारा कहते हैं।
वैद्युतिक
दुर्घटनाएँ (Electrical Accident)
- विद्युत क्षेत्र एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है जिसमें कार्य के दौरान दुर्घटना की निरंतर संभावना बनी रहती है। जैसे-विद्युत का झटका लगना या आग पकड़ना इत्यादि।
विद्युत
झटका लगने का कारण :
- जब सामान्यत: 90V से अधिक वोल्टेज पर हमारे शरीर के आर-पार विद्युत धारा प्रवाह स्थापित हो जाता है तो हमें एक झटके का अनुभव होता है। विद्युत धारा-100 mA इन ही कारण से ही जलयानों, थलयानों एवं वायुयानों आदि में सप्लाई वोल्टेज 110 रखा जाता है।
- किसी व्यक्ति को लगा झटका इस बात पर निर्भर करता है कि विद्युत धारा की कितनी मात्रा, कितने समय तक उस व्यक्ति के शरीर से प्रवाहित हुई है। अर्थात् यदि 10 mA की धारा 3-4 sec. तक प्रवाह (flow) हो जाए तो व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। विद्युत दुर्घटनाओं से बचने के लिए कार्यशालाओं में लगे सुरक्षा संकेतों का अनुपालन करना चाहिए।
- प्रत्येक कार्यशाला में अग्निशामक यंत्र आवश्यक रूप से उपलब्ध होने चाहिए क्योंकि विद्युत के 'शॉर्ट-सर्किट' अथवा अन्य किसी कारण से कार्यशाला में लगी आग की रोकथाम आवश्यक है।
आग
की किस्में :
(i)
श्रेणी 'A' आग-लकड़ी, कागज, कपड़ा, जूट आदि में लगी आग श्रेणी 'A' की आग कहलाती है।
(ii) श्रेणी 'B' आग-ज्वलनशील द्रवों एवं ठोसों
जैसे-मिट्टी का तेल, डीजल,
पेट्रोल आदि में
लगी आग श्रेणी 'B' की
आग कहलाती है।
(iii) श्रेणी
'C' आग-सिलिण्डर
आदि में भरी LPG गैस
आदि में लगी आग श्रेणी 'C की आग होती है।
(iv)
श्रेणी 'D'
आग-बिजली के
तारों, उपकरणों
एवं अन्य धात्विक पदार्थों में लगी आग को बुझाने के लिए CO-
या CTC यंत्र का प्रयोग करते हैं। ये आग श्रेणी 'D' की आग है।
अग्निशामक
यंत्र (Fire Extinguisher) :
- यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा जलती हुई वस्तु पर द्रव, गैस या चूर्ण का छिड़काव करके आग पर काबू किया किया जा सके।
ये
निम्न प्रकार के होते हैं
जलयुक्त
अग्निशामक यंत्र :
- इस प्रकार के यंत्र में वायुदाब के साथ जल भरा रहता है जिसकी बौछार आग पर करने पर आग पर काबू पा सकते हैं। यह श्रेणी A की आग बुझाने के लिए उपयुक्त है।
झाग
पैदा करने वाला अग्निशामक यंत्र :
- इस प्रकार के यंत्र जल की बौछार के साथ-साथ झाग भी छोड़ते हैं। इस प्रकार के अग्निशामक यंत्र से श्रेणी 'B' की आग बुझाई जाती है।
शुष्क
पाउडर वाला अग्निशामक यंत्र :
- इस प्रकार के यंत्र में जल के स्थान पर वायुदाब के साथ अज्वलनशील चूर्ण भरा होता है। इसका उपयोग श्रेणी 'C' प्रकार की बुझाने में किया जाता है।
कार्बन-डाइ-ऑक्साइड
वाला अग्निशामक यंत्र :
- इस प्रकार के यंत्र में सोडियम बाइकार्बोनेट तथा गंधक के तनु अम्ल की रासायनिक अभिक्रिया कराकर अत्यधिक मात्रा में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (COP) पैदा किया जाता है जिससे लगी आग बुझ जाती है। इससे श्रेणी 'डी' प्रकार की आग अर्थात् वैद्युतिक तारों इत्यादि में लगे आग को बुझाया जाता है।
कार्बन
टेट्राक्लोराइड वाला अग्निशामक यंत्र :
- इस प्रकार के यंत्र में कार्बन टेट्रा क्लोराइड (CCIA) अथवा ब्रोमोक्लोरो-डि-फ्लोरो मिथेन नामक द्रव, वायुदाब के साथ भरा यह अग्निशामक यंत्र सभी प्रकार की आग बुझाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
Important Point
- अर्थ में नमक, कोयला जल डालने से उसके आस-पास की भूमि में नमी बरकरार रहती है। अर्थिंग दो प्रकार की होती है-प्लेट अर्थिंग तथा पाइप अर्थिग जिसमें G.I. (Galvanized Iron) की पाइप या प्लेट होती है।
- B.H.P. का पूर्ण रूप है-Brake Horse Power 1 kWh = 860 किलो कैलोरी
- भारत में संचारित विद्युत धारा की फ्रीक्वेंसी 50 Hz ± 3% होता है।
- कोई वस्तु सुपर कंडक्टर कहलाता है जब उसका प्रतिरोध शून्य हो जायेगा। पारा को -4°C पर superconductor की तरह प्रयोग करते हैं।
- 1 कूलॉम = 1/10 emu = 3 x 109 esu
- emu (electro magnetic unit]
- esu (electrostatic unit]
- BIS चिह - ब्यूरो ऑफ इन्डियन स्टैंडड्स
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